दहलीज हूँ... दरवाजा हूँ... दीवार नहीं हूँ।
अंधेरा हर तरफ और मैं दीपक की तरह जलता रहा।
जहाँ तक रास्माता मालूम था हमसफर चलते गए,
जो सूख जाये दरिया तो फिर प्यास भी न रहे,
मैं धीरे-धीरे उनका दुश्मन-ए-जाँ बनता जाता हूँ,
रास्तों की उलझन में था हमसफर भी छोड़ गए।
भटका हूँ तो क्या हुआ संभालना भी खुद को होगा।
खुदा माना, आप न माने, वो लम्हे गए यूँ ठहर से,
सुना है कि महफ़िल में वो बेनकाब आते हैं।
मैं घर का रास्ता भूला, जो निकला आपके शहर से,
कभी उनकी याद आती है कभी उनके ख्वाब आते हैं,
बेचैन दिल को shayari in hindi सुकूं की तलाश में दर-ब-दर तो न कर,
कि पता पूछ रहा हूँ मेरे सपने कहाँ मिलेंगे?
समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नहीं सकता,